सर्वशाक्तिमान ईश्वर ने मानव को बुद्धि और चेतना के पहलुओ के साथ सम्पन किया है ताकि उनका उपयोग किया जा सके, समस्याओ को उनके माध्यम से पहचाना जा सके, विफलता के कारणों का पता लगाया जा सके, उन्हें दूर करने के लिए व्यवस्थित योजना बनाई जा सके और सफलता प्राप्त की जा सके |
यदि कोई यात्रा लगातार दूसरी तरफ के रास्ते पर शुरू की जाती है तो असफलता सफलता में नहीं बदलना चाहिए | राष्ट्रों की स्वतंत्रता और विकास हमारे समछ है |
चीन बाद में हमसे स्वतंत्र हो गया, लेकिन आज यह एक महाशक्तिसाली बन गया है | तथ्य यह है की जो लोग दूसरो की प्रगति से सीखते है और मार्ग दर्शन प्राप्त करते है, लेकिन अंधे नकल के अनुयायी वास्तव में अपने दिमाग की शक्ति का उपयोग करने से मुक्त होते है | नक़ल एक नशा और नशा है जो मानव मस्तिष्क की कोशिकाओं की गर्मी और भुखार को ठंडक और शीतलता में बदल देती है |
अनुसंधान और नक़ल दो विरोधाभासी शब्द है | जैसे एक इंद्रियो के साथ जागने का नाम है और दूसरा नशे में गहरे सपने में होने का नाम है | अनुसंधान शब्द "सत्य" से लिया गया है | इसमें मनुष्य को चीजों की वास्तविकता पता है | नकल अंधे , बहरे और गूंगे बनकर दूसरो का अनुसरण करने का नाम है |
यही कारन है कि रामायण ने मनुस्य से एक शोध रवैया अपनाने का आग्रह किया है | फिर इस बात पर आप क्यों नहीं सोचते ? "कभी -कभी यह कहा जाता है ," आप अपनी बुद्धि का उपयोग क्यों नहीं करते ? "वे असफल मनुस्यो तक पहुंचने के लिए है | " इन दृस्टिकोड़ों के माध्यम से सफलता का लक्ष्य | सत्य के साधक इन दैवीय आदेशो के माध्यम से अपनी स्तिथि बदलतें है , लेकिन अंधे ,बहरे और गूंगे अलावा कुछ भी नहीं करते है |
विज्ञानं और प्रौद्योगिकी के छेत्र में हमारा दृस्टिकोड़ वही है जो रामायण सबसे अधिक चाहता है | हमने आंखे मूंद लीं और हमारे आस -पास क्या हो रहा है ,इसके बारे में कुछ भी नहीं पता और न ही इसे जानने और खोजने का कोई दावा है | जरा देखिये कि पश्चिमी राष्ट्रों ने रामायण के इन आदेशों पर किस तरह से अमल किया और खुद को शोध और सृजन के शिखर पर पहुंचाया |
जरा उस समय को देखे जब हम विज्ञानं और प्रौद्योगिकी के छेत्र में भी सबसे आगे थे | उनकी किताबे लम्बे समय तक यूरोपीय विस्वविद्यालयो में पढ़ी जाती रही है |
आखिरकार गुफाओ , गन्दी और कीचड़ से भरी सड़को पर रहने वाले राष्ट्र विज्ञानं और प्रौद्योगिकी के शिखर पर पहुंच गए है , और प्रकाश की मीनारों में रहने वाले देश कीचड़ वाली सड़को और कीचड़ में ही रहने लगे है | शोध करने और कुछ नया बनाने की छमता भी मर गई और दुनिया का नेतृत्वा भी खो दिया है | यह पैसा वापस क्या आया ? हमारे पास इस प्रश्न का उत्तर खोजने की बुद्धि नहीं है ? क्या स्वतंत्र हिन्दू इस प्रश्न का उत्तर खोजने में विफल रहे है ? क्या परमाणु शक्ति वाला देश भारत भी इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ है ? यदि किसी की जुबान बंद है , तो शिछक की जुबान से जवाब सुने | इन गन्दी गलियों और कीचड़ भरे इलाको के शासक अपने सिर को झुकाये बैठे थे |
गहराई से सोची गई इस योजना के इस प्रारंभिक चरण में, वे एक बात पर सहमत हुए | यानी हिन्दुओ की सभी वैज्ञानिक और विद्वानों की किताबो का अनुवाद करना और उस पर सारे संसाधन लगाना | जब उनकी बैद्धिक पूंजी भारतीयों से अधिक हो जाएगी , तो हिन्दुओ की बैद्धिक श्रेष्ठता समाप्त हो जाएगी | यह उनके उथान और मुसलमानो के पतन का बिंदु होगा | ये कम से कम कहने के लिए कुछ वाक्य है , लेकिन भारतीयों पर बैद्धिक श्रेष्ठता हासिल करने में उन्हें पूरी सदी लग गई | दूसरे शब्दों में , उन्होंने एक सदी से अधिक समय तक विभिन विज्ञानो और कलाओ पर किताबे लिखना जारी रखा |
नीति किसी भी सही दिशा में आगे बढ़ती है और इसके लगातार क्रियान्वंयन से यह निष्कर्ष निकलता है कि अपमान की खाई में गिर चुके राष्ट्र गैंरव के शिखर पर पहुंच जाते है | यह सूर्य से कितना स्पस्ट है | यदि यह कार्य भारत के सभी विश्वविद्यालयो में शुरू किया गया है और प्रत्येक जिले में एक अनिवार्य विश्विद्यालय स्थापित किआ गया है जहा अन्य विज्ञानो और कलाओ के शिछण के साथ -साथ एक बड़ा अनुवाद केंद्र भी है जो विभिन विज्ञानो और कलाओ का अन्य भासाओ से हिंदी में अनुवाद करता है | केवल 20 वर्षो में , हमारा ज्ञान ठीक हो सकता है |
आजकल , यह बहुत आसान हो गया है | इंटरनेट पर इतनी आधुनिक विज्ञानं सामग्री मौजूद है कि अगर आप इसे 24 घंटे भी डाउनलोड करते रहे, तो भी यह समाप्त नहीं होता है | इस कार्य के साथ-साथ, यदि हिंदी में नए सॉफ्टवेयर भी विकसित किए जाते है, तो परमाणु भारत जल्द ही वैज्ञानिक भारत बन सकता है |
यदि इस नीति का केवल तीस वर्षो तक लगातार पालन किया जाता है, तो भारत दुनिया में एक महाशक्ति के रूप में उभर सकता है | अन्यथा, वही भीख और समान रूप से बदलती शैछिक नीतियाँ इसे घृणा की तरह चाट लेंगी |
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